वह आलौकिक तंत्र जिससे मनुष्य अनोखी और दिव्य शक्तियां प्राप्त करता है | The supernatural system by which man acquires unique and divine powers

Human Chakra: The Journey of Enlightenment and Surrender

मित्रों आपने पौराणिक कथाओं में ऐसे ऋषियों, मुनियों के बारें में जरूर सुना होगा, जिनके पास अद्भुत और आलौकिक शक्ति होती थी, जो आम मनुष्यों की समझ से परे होते थे । ऐसे स्थिति में आपके मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि आखिर उनके पास ऐसा क्या था कि उन्हें सुख और दुःख बराबर लगता था। वे किसी को वरदान या श्राप भी देते थे तो वह सच हो जाता था। तब मित्रों आपको बता दें कि वे अपनी कुण्डलिनी जागृत कर लेते थे ,यानी कि अपने सातों चक्रों को जागृत करते थे। जिसके पश्चात् साधारण मनुष्य के पास भी असाधारण शक्तियां आ जाती थी। जिससे वह आदमी एक दिव्य पुरुष बन जाता था। मनुष्य के शरीर में अनेक प्रकार के चक्र होते हैं। जिनके जागृत होने पर शरीर में अनेक प्रकार की ऊर्जा की उत्पत्ति होती है। प्रत्येक चक्र को जगाने के लिए अलग-अलग तरीके होते हैं। प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मुख्यता सात चक्र होते हैं, जिनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं -मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुध्द चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र।ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि में सभी देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। जिनसे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों को धन-दौलत और बल प्रदान करते हैं। नवरात्रि में प्रत्येक दिन एक विशेष चक्र को  किया जाता है, जिससे हमें विभिन्न चक्रों से अलग-अलग प्रकार की ऊर्जा मिलती है। अगर हम इस ऊर्जा का सही तरीके से प्रबंधन कर लें तो असाधारण सफलता को भी अत्यंत सरल तरीके से प्राप्त कर सकते हैं। चलिए दोस्तों आज हम आपको प्रत्येक चक्रों के बारें में विस्तार से बताते हैं।

मूलाधार चक्र (Mooladhara Chakra)

यह शरीर का पहला चक्र होता है। इसे कायकाल चक्र के नाम से भी जानते हैं। यह गुदा और लिंग के बीच, चार कमल की पंखुड़ियों वाला आधार चक्र है। यह चक्र हमारे शरीर में नाभि के नीचे स्थिति होता है और इसे आधार चक्र माना गया है। 99.9 % लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। मूलाधार चक्र वह है, जिसमें मनुष्य भोजन और नींद के लिए तरसते हैं और अगर आपने इस चक्र में सही तरीके से जागरूकता पैदा कर ली तो आप इन चीजों से पूरी तरह से मुक्ति भी हो सकते हैं। मूलाधार चक्र का बीज मंत्र “लं” है। इस चक्र को जागृत करने के लिए भोग, सम्भोग और निद्रा पर संयम रखना होता है।

मूलाधार चक्र जागृत के उपाय ( Ways to awaken Muladhara Chakra )

आप एक जगह आराम से बैठ जायें, अपने रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें, और अपने ध्यान को पेरिनियम यानी गुदा और जननेन्द्रियों के बीच के स्थान पर केंद्रित करें। अपनी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के साथ एक वृत्त बनाये। हथेलियों को अपने घुटनों पर रखकर, आकाश की ओर देखते हुए हाथों को विश्राम कराए। अब इसी स्थिति में 7 से 10 बार गहरा श्वास लें और छोड़ दें।

प्रभाव (Effect)

इस चक्र के जाग्रत होने पर मनुष्य के भीतर निर्भीकता, वीरता और आनंद का भाव जागृत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए हमें इन सब गुणों का होना अत्यंत आवश्यक होता है।

स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra)

यह शरीर का दूसरा चक्र होता है। इसे सकराल चक्र के नाम से भी जाना जाता है। यह लिंग मूल से चार उंगल ऊपर स्थित है। जिसकी 6 पंखुड़ियां है। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में अमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौजमस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जायेगा, आपको पता भी नहीं चलेगा और बाद के समय में आप पछतायेंगे। स्वाधिष्ठान चक्र का बीज मंत्र “वं” है। हमारे जीवन में मनोरंजन जरुरी है लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी मनुष्य की चेतना को बेहोशी में धकेल देता है।

स्वाधिष्ठान चक्र जागृत के उपाय (Ways to awaken Swadhisthana Chakra)

अपनी गोद में अपने दाहिने हाथ को बाएं हाथ पर रख कर विश्राम कराएं, याद रखे कि आपकी हथेलियां आकाश कि ओर रहें, इस स्थिति में अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा करके ही बैठें और अपने ध्यान को अपनी नाभि के नीचे एक इंच के क्षेत्र में से लेकर पहली लुम्बर वरटिब्रा तक केंद्रित करें। आपके दोनों अंगूठे एक-दूसरे से हल्के स्पर्श होने चाहिए। इस स्थिति में 7 से 10 बार गहरी श्वास लें और बाहर निकालें।

प्रभाव (Effects)

स्वाधिष्ठान जागृत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा और अविश्वास आदि दुर्गुणों का नाश होता है। जीवन में धन-दौलत से परिपूर्ण होने के लिए इन सभी दुर्गुणों का नाश होना अत्यंत जरुरी होता है।

मणिपुर चक्र (Manipur Chakra)

यह मनुष्य के शरीर में पाया जाने वाला तृतीय चक्र होता है। इसे सौर जालक चक्र के नाम से भी जाना जाता है। नाभि के मूल में स्थित “रं” वर्ण का यह तीसरा चक्र है, जो मणिपुर चक्र के नाम से प्रसिद्ध है। मणिपुर चक्र 10 कमल पंखुड़ियों से बना हुआ है। जिस व्यक्ति की ऊर्जा या चेतना यहाँ पर एकत्रित है, उसे काम करने का लगन होता है और अपने काम को बड़े ही ईमानदारी से करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को कर्मयोग्य कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर काम करने के लिए तैयार रहते हैं। इसका बीज मंत्र “रं” है। अपने कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे।

मणिपुर चक्र जागृत के उपाय (Ways to awaken Manipur chakra)

आराम से रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठ जाएँ और अपने ध्यान को अपनी नाभि से लेकर सोलर प्लेक्सस और आठवीं थोरेसिक वरटिब्रा तक केंद्रित करें। अपनी उंगुलियों को सीधा रखें, सामने की ओर देखते हुए एक-दूसरे को शीर्ष पर छूती हुयी होनी चाहिए। अब अपने अंगूठों के साथ “वी” की आकृति बनाये। दाहिना अंगूठा, बाएं अंगूठा को क्रास करते हुए रखें। इस स्थिति में 7 से 10 बार गहरी श्वास लें और छोड़ दें।

प्रभाव (Effects)

इसके सक्रिय होने पर व्यक्ति तृष्णा, ईष्या, चुगली, लज्जा, घृणा, मोह आदि दुर्भावनाओं से दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। आत्मवान और दिव्य शक्ति प्राप्त करने के लिए इन सभी चीज़ों से दूर रहना चाहिए।

अनाहत चक्र (Anahata chakra)

मनुष्य के शरीर का यह चतुर्थ चक्र होता है। इसे ह्रदय चक्र भी कहते हैं। ह्रदय स्थल में स्थिति स्वर्णिम रंग का चक्र होता है। इसका बीज मंत्र “यं” होता है। यह चक्र कमल की 12 पंखुड़ियों से मिलाकर बना होता है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत चक्र में स्थित होगी तो आप एक सृजनशाली व्यक्ति होंगे अर्थात आप रोज नए-नए चीज़ों को बनाने में अपने आपको व्यस्त रखते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति कहानीकार, लेखक, डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक भी हो सकते हैं।

अनाहत चक्र जागृत के उपाय (Ways to awaken Anahata chakra)

अपनी तर्जनी ऊँगली और अंगुठें के साथ एक वृत्त बनाएं। अपने बाएं हाथ की हथेली को अपने बाएं घुटने पर विश्राम कराए, अपने दाहिने हाथ को अपने स्तनों के बीच तक उठाये, हथेली हल्की सी आपके ह्रदय की तरफ झुकी रहे। इस स्थिति में 7 से 10 बार गहरी श्वास लें और छोड़ दें।

प्रभाव (Effects)

इसके जागृत होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, चिंता, मोह, अविवेक और अंहकार समाप्त हो जाते हैं।

विशुध्द चक्र (pure cycle)

यह मनुष्य के शरीर का पाँचवा चक्र होता है, जिसे कंठ चक्र या गलग्रंथि चक्र भी कहते हैं। कहा जाता है कि कंठ चक्र में माता स्वरसती जी का निवास होता है। यह चक्र में मनुष्य के कंठ पर स्थित होता है। इसमें 16 पंखुड़ियां होती हैं। इसका बीज मंत्र “हं” होता है। कंठ चक्र के जागृत होने से आप बहुत ही शक्तिशाली और अपने वाणी पर काबू करने वाले इंसान हो जाते हैं। कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है।

विशुध्द चक्र जागृत के उपाय (Ways to awaken Vishuddha chakra)

आराम से अपने रीढ़ की हड्डी को सीधा करके अपने ध्यान को गले के आधार क्षेत्र पर से लेकर तीसरी सरवाइकल वरटिब्रा तक केंद्रित करें। अपने दोनों अंगूठों को छूते हुए एक वृत्त बनाएं और अपने उंगुलियां को आपस में क्रास करें और ढीले कप की आकृति बनाये। अपने हाथों को गले और सोलर प्लेक्सस के सामने तक उठायें। 7 से 10 बार गहरी श्वास लें और फिर धीरे-धीरे करके छोड़ दें।

प्रभाव (Effects)

इसके जागृत होने से सोलह कलाओं और सोलह विभूतिओं का ज्ञान हो जाता है। इसके जागृत होने से इंसान अपने भूख और प्यास को केंद्रित कर सकता है। वही मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

आज्ञा चक्र (Ajna Chakra)

यह मनुष्य के शरीर का छठा चक्र होता है। इसे “तीसरी आँख” भी कहते हैं, क्योकि यह माथे के मध्य और हमारे भौहें के बीच में स्थित होता है। सामान्य तौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा इस चक्र पर केंद्रित होती है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न व संवेदनशील और तेज़ दिमाक का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बाद भी मौन रहता है। इसका बीज मंत्र “शं” है। भृकुटि के मध्य ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है।

आज्ञा चक्र जागृत के उपाय (Remedy to awaken Ajna chakr)

भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जागृत होने लगता है।
आराम से अपने रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठ जाये और अपने ध्यान को अपनी तीसरी आंख के क्षेत्र पर केंद्रित करें, भौहें के बीच के बिंदु से थोड़ा ऊपर से शुरू होकर पहली सरवाइकल कशेरुका तक, खोपड़ी के आंतरिक भाग को शामिल करते हुए। अपने दोनों अंगूठों तथा दोनों तर्जनी उंगुलियों के सिरों को आपस में स्पर्श कराते हुए ह्रदय का आकर बनाएं, अनामिका व कनिष्का आपस में उंगुलियों के दूसरे पैरों पर स्पर्श करें। मध्यमा उंगुलियों से ताज बनाएं और अपने हाथों को उठाकर तीसरे नेत्र, सोलर प्लेक्सस के सामने रखें या अपनी गोद में विश्राम करने दें। अब इस स्थिति में 7 से 10 बार गहरी श्वास लें और धीरे-धीरे छोड़ दें।

प्रभाव (Effects)

यहाँ पर अपार शक्तियों और सिध्दियों का निवास होता है। इस आज्ञा चक्र के जागरण होने से ये सभी शक्तियां जग जाती हैं और वह व्यक्ति एक सिध्दपुरुष बन जाता है।

सहस्त्रार चक्र (sahasrara chakr)

यह मनुष्य के शरीर का सातवां चक्र होता है। इसे शुध्द चेतना चक्र के नाम से भी जाना जाता है। यह मनुष्य के मस्तिष्क के मध्य भाग में होता है अर्थात जहां पर छोटी रखते हैं, वहां पर सहस्त्रार चक्र का निवास होता है। यदि कोई व्यक्ति सभी नियम का पालन करते हुए यहाँ तक पहुंच गया है तो वह व्यक्ति आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, सन्यास और सिध्दियों से कोई मतलब नहीं होता है। मूलाधार चक्र से होते हुए ही सहस्त्रार चक्र तक पंहुचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परहंस के पद को प्राप्त कर लेता है। इसका बीज मंत्र “ॐ” होता है।

सहस्त्रार चक्र जागृत के उपाय (Ways to awaken Sahasrara chakr)

आराम से अपने रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठ जाएँ और अपने सिर के शीर्ष पर स्थित अपने मुकुट के क्षेत्र पर और अपनी खोपड़ी से ऊपर तीन इंच तक अपन ध्यान केंद्रित करें। उंगुलियों को आपस में अंदर की ओर क्रास करते हुए तथा बाएं अंगूठे को दाएं के नीचे रखें, इस तरह से अपने हाथों को जकड़ लें। दोनों अनामिका उंगुलियों को उठाकर मुकुट बनाये। अपने सिर के ऊपर से दोनों हाथों को उठाये और सोलर प्लेक्सस के सामने या अपनी गोद में विश्राम कराएं। अब इस स्थिति में 7 से 10 बार गहरी श्वास लें और धीरे-धीरे छोड़ दें।

प्रभाव (Effects)

यह सबसे शक्तिशाली चक्र होता है। जिस व्यक्ति के सारे चक्र जाग्रत हो जाते हैं तो उस व्यक्ति की समस्त शक्तियां उन्हें सिध्दियों के रूप में प्राप्त हो जाती हैं। इस चक्र को जागृत करने में बहुत समय लगता है परन्तु अगर आप इस चक्र को जाग्रत कर लेते हैं तो आप जिंदगी में सब कुछ हासिल कर लेते हैं।
शरीर संरचना में इस स्थान पर आने के बाद अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का सग्रहण हो जाता है और यही मोक्ष का द्वार भी होता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

जैसा कि हमारे भारत देश में योग को विशेष स्थान प्राप्त है। वेदों और पुराणों में भी बताया गया है कि प्रतिदिन योगा करने से हमारा शरीर स्वस्थ्य रहता है। दोस्तों आज हमें ये पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति नियमित और लग्न से योग और साधना में लीन रहता है तो उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। अनेक चक्रों को पूर्ण करके इंसान बहुत सी सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है। भगवान बुद्ध ने पीपल के नीचे ज्ञान प्राप्त किये और वे आज पूरे विश्व में भगवान बुद्ध के नाम से जाने जाते हैं। भगवान बुद्ध तथा अन्य सभी पितरों की आत्मा की शांति के लिए हम पितृपक्ष में अपने पितरों और देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। 

चक्रों के नामचक्रों का रंगचक्रों के बीज मंत्रमनुष्य के शरीर में चक्रों का स्थान
मूलाधार चक्रलाललंनाभि के नीचे
स्वाधिष्ठान चक्रनारंगीवंलिंग मूल से चार उंगल ऊपर
मणिपुर चक्रपीलारंनाभि के मूल में
अनाहत चक्रहरायंह्रदय स्थल में
विशुध्द चक्रनीलाहंकंठ पर
आज्ञा चक्रआसमानीशंमाथे के मध्य और हमारे भौहें के बीच में
सहस्त्रार चक्रबैंगनीमस्तिष्क के मध्य भाग में
Hari Om: