पितृपक्ष पितरों का त्यौहार होता है। यह पितृ पक्ष पित्रों का उद्धार करने के लिए मनाया जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक चलता है और तब तक लगातार इस त्यौहार को मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर हमारे घर आते हैं। इसलिए लोग बड़े ही श्रद्धा भाव से उनकी पूजा करते हैं, जिसे पितृपक्ष कहा जाता है। पितृपक्ष, श्राध्व पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि जो व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन में जैसा कर्म करता है उसे मृत्यु के बाद वैसा ही लोक प्राप्त होता है, यानि जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो उसे मरने के बाद स्वर्ग लोक प्राप्त होता है और जो व्यक्ति बुरे कर्म करता है तो उसे नरक लोक प्राप्त होता है। यह माना जाता है कि सभी पितृ अपने पुत्रों के पास आते हैं, ताकि उन्हें तर्पन मिले और जो उन्हें संतुष्ट कर देता है उसे पितृ आशीर्वाद देते हैं जबकि जिनसे उन्हें कुछ नहीं मिलता है तो वे क्रोधित और दुःखी होकर उन्हें अभिशाप भी देते हैं।
पितृपक्ष कब से शुरू होता है (When does Pitru Paksha start)
पितृपक्ष को श्राध्य पक्ष भी कहते हैं। पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक मनाया जाता है। साल 2023 में यह 29 सितम्बर से शुरू होकर 14 अक्टूबर तक चलेगा और लोग इसमें अपने पितरों की पूजा-पाठ करेंगे और उनको तर्पन अर्पित करते हैं। इसमें ये पूरा 15 दिन का समय रहता है। इन दिनों में हमारे पूर्वज अनेक प्रकार के रूप बना कर धरती पर आते हैं जैसे- पशु, पक्षी, आदि अनेक प्रकार का रूप बना कर आते हैं। इसलिए पितृपक्ष हम चिड़ियों, गायों आदि को खाना खिलाते हैं। जिससे उनको पुण्य की प्राप्ति होती है। इसमें लोग अपने पितरों को पिंडदान और तर्पन करते हैं।
year | Start Date | End Date |
2018 | 25 सितंबर | 8 अक्टूबर |
2019 | 13 सितंबर | 28 सितंबर |
2020 | 1 सितंबर | 17 सितंबर |
2021 | 20 सितंबर | 6 अक्टूबर |
2022 | 10 सितंबर | 25 सितंबर |
2023 | 29 सितम्बर | 14 अक्टूबर 2023 |
2024 | 17 सितंबर | 2 अक्टूबर |
2025 | 7 सितंबर | 21 सितंबर |
2026 | 26 सितंबर | 10 अक्टूबर |
2027 | 15 सितंबर | 29 सितंबर |
2028 | 3 सितंबर | 18 सितंबर |
पितृपक्ष का महत्त्व (Importance of father’s side)
पितृपक्ष का हमारे हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है। इसमें पूर्वज मृत्युलोक से धरती लोक में आते हैं और उन्हीं से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ही हम पितृपक्ष में पूजा करते हैं और गरीबों एवं जीव-जंतुओं को खाना खिलाते हैं। पितृपक्ष की पूजा करने से हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है और इससे वे प्रसन्न होकर हमें सुख-समृद्धि होने का आशीर्वाद देते हैं। इसमें अपने पूर्वज के प्रति आभार व्यक्त करने और आध्यात्मिक रूप से उनसे मिलने का अवसर प्राप्त होता है। यह बहुत ही सौभाग्य का समय होता है। पितृपक्ष को श्राध्य पक्ष इसलिए कहते हैं क्योकि श्रद्धा से ही श्राध्य शब्द की उत्पत्ति होती है अर्थात अपने मृत्यु पितृगणों के उद्देश्य से श्रद्धा पूर्वक किये गए कार्य विशेष को ही श्राध्य कहते हैं। जिसका वर्णन मनुष्य स्मिर्ति आदि ग्रंथों में में है तथा शास्त्रों और पुराणों में भी है। जो व्यक्ति शांतिपूर्ण सही ढंग से और श्रद्धा पूर्वक पितरों की पूजा और सेवा करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। सनातन धर्म के अनुसार, पितृ पक्ष में किये गए श्राध्य से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है तथा जो पितृपक्ष में पितरों की सेवा करता है वह पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। बहुत से पितृ हमारे ऐसे भी थे जिन्होंने अपने सातों चक्रों को जागृत करके दिव्य शक्ति प्राप्त कर लिये थे। जिनमें महात्मा बुद्ध का नाम बहुत ही प्रसिद्ध है।
पितृपक्ष में पूजा करने के लिए कौन-कौन सी वस्तुओं की आवश्यकता होती है (What items are required for worship during Pitru Paksha)
पितृपक्ष में पूजा करने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता होती है।-
- पिंड (lump): पिंड एक विशेष तरह का उपहार होता है, जो पितरों को उनकी आत्मा की शांति के लिए दिया जाता है।
- काला तिल (black mole): हमें पितृपक्ष को पूजा करते समय एक लोटे में थोड़ा-सा गंगा जल और काला तिल बाकी पूरे लोटे को साफ व सरक्षित जल से भर कर दक्षिण दिशा की तरह मुँह करके अपने पितरों को जल अर्पित करना चाहिए। जिससे वे खुश होकर हमको आशीर्वाद दे।
- कुशा घास (kusha grass): हमारे सनातन धर्म में कुश घास को बहुत ही पवित्र माना गया है। यह एक प्रकार की प्राकृतिक रूप से उगने वाली घास होती है। बिना कुश के पितृपक्ष की पूजा अधूरी मानी जाती है।
- पूजा की थाली (puja thali): आरती के लिए हमें विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को आवश्यकता होती है,जैसे- तुलसी की पत्ती, फल-फूल, अगरबत्ती ,कपूर, गाय का घी, दिया, आदि।
- उपहार सामग्री (gift items): हम पितृपक्ष में गरीबों तथा ब्राह्मणों को गेंहू, घी, चावल, दूध व प्रसाद आदि सामग्री उपहार के रूप में देते हैं।
- प्रसाद (Offering): हम अपने पितरों की पूजा करने के बाद प्रसाद भी देते हैं।
पितृपक्ष में पितरों की पूजा कैसे की जाती है (How ancestors are worshiped in Pitru Paksha)
पितृपक्ष में पितरों की पूजा करने के लिए हमें अपने पूजा की समस्त सामग्री को साथ लेकर रखना चाहिए। इसमें हम सबसे पहले दक्षिण दिशा में मुँह करके अपने बाए पैर को मोड़कर तथा बाए घुटने को जमीन पर टिका कर बैठ जाना चाहिए। इसके बाद सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश भगवान का स्मरण करें, क्योकि कोई भी कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। अब दो पीतल के पारात को लेकर अपने सामने रख ले। इसमें से एक परात को शुद्ध जल से भर ले और इसमें थोड़ा-सा गंगा जल, थोड़े- से तिल, दूध और फूल मिला ले। फिर कुश को गांठ लगा कर अपने दाहिने हाथ में अंगूठे से दबा कर रख ले। अब आप एक परात से जल अपने दोनों हाथों में ले और बगल में जो खली परात रखी है उसमे डाल दें। ऐसा हमें लगातार तीन बार करना होता है और साथ में इस विधि को संपन्न करते समय हमें अपने पितरों के नाम को स्मरण करना होता है। याद रखे कि पूजा संपन्न होने के बाद हमें पूजा स्थल पर काले तिल छोड़ देना चाहिए और अपने पितरों एवं देवी-देवताओं से क्षमा याचना भी कर लेनी चाहिए। हर तर्पन सम्पन्नय हो जाने के बाद सबसे पहले गाय को रोटी खिला कर आये उसके बाद ही कुछ करें।
पितृपक्ष में क्या-क्या नहीं करना चाहिए (What should not be done during Pitru Paksha)
पितृपक्ष के दौरान हमें विभिन्न चीज़ों का विशेष महत्व रखना चाहिए –
- पितृपक्ष के दौरान हमें लोहे के बर्तन में खाना नहीं पकाना चाहिए। लोहे के सिवाय हमें पीतल या तांबे के बर्तन में खाना पकाना चाहिए।
- इसमें हमें तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। जैसे- मांस, मछली, अंडे, लहसुन, प्याज का सेवन पितृपक्ष में करने से हमारे घर पर बुरा संकट आ सकता है। इसलिए इसमें इन सब चीज़ो का सेवन नहीं करना चाहिए।
- पितृपक्ष के दौरान पुरुषों को अपने नाख़ून, दाढ़ी और बाल नहीं कटवाने चाहिए।
- पितृपक्ष के दौरान हमें दारू, गाजा, सिकरेट आदि नशे और मदिरापान करने से बचाना चाहिए।
- पितृपक्ष के दौरान जमीन के नीचे से उगने वाली सब्जियों का सेवन भी नहीं करना चाहिए। जैसे- अरवी, शलजम, गाजर, मूली, सूरन, चुकंदर आदि।
- पितृपक्ष में पितरों की पूजा करने के दौरान हमें भूल कर भी सफ़ेद तिल का उपयोग नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा काले तिल का ही उपयोग करना चाहिए।
- पितृपक्ष में हमें किसी विशेष हवन या यज्ञ कराने से बचाना चाहिए।
- इसमें कुत्ता, बिल्ली, पशु-पक्षी को कभी न मारे क्योकि पितृपक्ष के दौरान ही हमारे पूर्वज किसी भी रूप में धरती पर हमारे घर आते हैं।
- घर में अगर कुछ नया सामान खरीदना हो तो पितृपक्ष के पहले या बाद में ख़रीदे, क्योकि पितृपक्ष के दौरान हमें किसी नए कार्य को नहीं करना चाहिए।
- पितृपक्ष में ब्राह्मण को खाना खिलाते समय इतना भोजन परोसे कि उनके थाली में भोजन कम न पड़े।
पितृपक्ष के दौरान क्या-क्या करना चाहिए (What should be done during Pitru Paksha)
पितृपक्ष के दौरान हमें इन चीज़ों को जरूर करना चाहिए-
- पितृपक्ष में हमें अपने पूर्वजों के लिए नियमित विधि-विधान से तर्पन अर्पित करना चाहिए।
- इस दौरान हमे श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वज की पूजा करनी चाहिए।
- शाम के समय गाय के घी का दीपक हमें दक्षिण दिशा की तरफ करके पीपल के पेड़ के नीचे रखना चाहिए।
- इसमें ब्राह्मणों को खाना खिलाना चाहिए।
- पितृपक्ष में अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए हमें पिंडदान जरूर करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में किसी जरुरत को भोजन, गरीबों की सहायता करने तथा किसी कन्या की शादी में मदद करने से हमारे पूर्वज खुश होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं।
- पितृपक्ष के दौरान हमें सोना, चाँदी आदि किसी भी प्रकार के आभूषण नहीं खरीदना चाहिए।
- पिंडदान करते समय हमें कमल, चंपा, मालती, जूही और सफ़ेद फूलों का प्रयोग करना चाहिए।
- पितृपक्ष के दौरान हमें अपने पूर्वज की फोटो को दक्षिण दिशा में लगाना चाहिए।
- पितृपक्ष में हमें अपने पूर्वज की पूजा करने के साथ-साथ देवी-देवताओं की भी पूजा जरूर करनी चाहिए।
पितृपक्ष में दान और पुण्य (Charity and virtue in Pitru PAKSH)
पितृपक्ष में दान और पुण्य का हमारे सनातन धर्म में विशेष महत्व है। सनातन धर्म के अनुसार, अगर हम किसी गरीब की सहायता और ब्राह्मणों को दान देते हैं तो हमें पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर हम यही काम पितृपक्ष के दौरान करते हैं तो हमारे पूर्वज हमसे खुश होकर खुश और समृद्ध होने का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष के दौरान हमें काले तिल, गुड़, अन्न, गाय का घी, चाँदी, नमक, जूते, कपड़ें वा अन्य जरूरत मंद चीज़े दान कर सकते हैं। इससे हमें वे लोग दुआ देते हैं।
पितृ दोष के कारण (Due to Pitra dosh)
पितृ दोष निम्नलिखित कारणों से होता है –
- पितरों की मृत्यु के बाद उनका विधिवत संस्कार तथा श्रद्धा न करना।
- पितरों का अपमान करने से हमारे पूर्वज हमसे नाराज हो जाते हैं। जिनसे हमें पितृ दोष प्राप्त होता है।
- हमें गौ माता की हत्या या उनका अपमान करने से पितृ दोष की प्राप्ति होती है।
- फल लगे हुए या हरे पेड़ों को नहीं कटना चाहिए।
- पवित्र स्थल पर गलत कार्य करना।
पितृ दोष के पहचान ( Identification of Pitra Dosh )
- घर में सब कुछ होते हुए भी हमेशा बिना वजह घर पर लड़ाई होना।
- पितरों के अतृप्त होने का आभास होना।
- परिवार के सदस्यों का गंभीर रोगों से ग्रसित होना या आकस्मिक दुर्घटना का शिकार होना।
- घर के कार्यों में बाधाएँ आना और कोई भी कार्य सही समय पर संपन्न न होना।
- विवाह के पश्चात् कई वर्षों तक संतान का सुख प्राप्त न होना।
पितृ दोष के निवारण (Redressal of Pitra Dosha)
- पितरों की तृप्ति के लिए पितृपक्ष में तर्पन और श्राध्द करें।
- अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष पर कच्चा दूध, काला तिल और फूल मिला कर जल अर्पित करना चाहिए।
- पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को को भोजन कराये।
- पितृपक्ष में गरीबों और जरूरत मंद लोगों की मदद करें।
- दान और पुण्य करने से पितृ दोष कम होता है।
मानव चक्र: आत्मज्ञान और समर्पण की यात्रा | Human Chakra: The Journey of Enlightenment and Surrender
निष्कर्ष (conclusion)
पितृपक्ष एक विशेष समय होता है जिसमें हमें अपने पितरों को श्रद्धांजलि देने का अवसर प्राप्त होता है। जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष हमारे इतिहास काल से ही चलती आ रही एक ऐसी परम्परा है जिसमें हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
मेरे विचारों के हिसाब से पितृपक्ष को मानाने से हमारे धरती पर रहने वाले पशु-पक्षी को जल और भोजन की प्राप्ति होती है। जिससे हमें पुण्य की प्राप्ति होती है। वृक्षों को भी जल मिलता है, जिस वजह से वे ज्यादा दिन तक जीवित और हरे -भरे रहते हैं तथा जीवनदायनी आक्सीजन देते रहते हैं।